999 सूक्त लुप्त, फिर भी वेद संरक्षित?

999 सूक्त लुप्त, फिर भी वेद संरक्षित?
By Neer Mohammed
वेदों के विषय में जानबूझ कर फैलाई गई अनेक भ्रांतियों में से एक है –
वेदों में परिवर्तन नहीं हो सकता, वेदों की अपरिवर्तनशीलता सुनिश्चित है, वेद अपने विशुद्ध स्वरुप में है, उनमें किंचित भी फेर बदल नहीं है, वेद संहिताएं आज भी हमें विशुद्ध मूल स्वरुप में यथावत (वैसे की वैसे) उपलब्ध हैं|
जबकि अनेक प्रमाण मिलते हैं जो खुद बोलते हैं कि वेद परिवर्तित हो गए हैं, वेद संहिताएं शुद्ध रूप में नहीं है, तब स्वयंभू आचार्यो का उन्हे पूर्ण सिद्ध करना वैसे ही हास्यास्पद है जैसे कोई व्यक्ति स्वयं कह रहा हो कि “मैं जीवित हूं” लेकिन एक दूसरा उसका हितैषी कह रहा हो कि ‘नहीं, तुम जीवित नहीं हो, तुम मृत हो’।
पाठक समझ सकते है इनमे से प्रामाणिक कौन है। हमने अपने लेख “Textual Corruption of the Vedas, (हिन्दी- वेदों में परिवर्तन (संक्षिप्त विश्लेषण))” में वेदों में परिवर्तन प्रमाणित किया है। हमारे लेख पर मिश्रित प्रतिक्रिया मिली। कुछ वीरों ने वीरता भी दिखाई और हमारे लेख का उत्तर भी दिया। हमने सोचा कि ये वेदों को समझने का एक सुनहरा अवसर होगा पाठको के सामने, लोग वाद-विवाद से जानकारी हासिल करेंगे। पर वीरों की वीरता ने हुमें बुरी तरह निराश किया। लेकिन हमने भी उनकी वीरता को देखते हुए उनके लेख का उत्तर दे दिया जिसे पाठक यहाँ पढ़ सकते हैं। हम आशा कर रहे थे कि ये सिलसिला आगे चलेगा परंतु कोई मुसाफिर अभी तक नहीं भटका। इन वीरों ने कुछ अन्य विषयों पर भी वीरता दिखाने की नाकाम कोशिश की परंतु उनके लेखों से झलकती निराशा के कारण हमने उत्तर नहीं देना ही उचित समझा।
जैसा कि हम ने आप से कहा था कि आने वाले लेखों में हम वेद संहिताओं में हुए अन्य परिवर्तन उजागर करेंगे। तो आज हम वेदों के परिवर्तन की हमारी श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए कुछ और तथ्य आपके सामने रख रहे हैं।
ऋग्वेद के 999 सूक्त लुप्त;
शौनक के ब्रहद्देवता, कात्यायन की सर्वानुक्रमणि, तथा सायण और स्कन्द स्वामी के ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 99 के भाष्य की उत्थानिका में लिखा है कि कश्यप ऋषिदृष्ट 1000 सूक्त थे, उन में क्रम से एक-एक मंत्र बढ़ता जाता है।
१.अनुक्रमणीकार कात्यायन :
सूक्त 99 पर अनुक्रमणीकार कात्यायन ने लिखा है कि
जातवेदस एका । जातवेदस्यम् एतदादीन्येकभूयांसि सूक्तसहस्त्रमेतत्कश्यपार्षम् ।
अर्थात, जातवेदस इत्यादि 1000 सूक्त कश्यप ऋषिदृष्ट हैं।
२.शोनक ऋषि का ब्रहद्देवता:
एक हज़ार जातवेदस को संबोधित सूक्त जो इंद्रा को संबोधित सूक्त (ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 100 ) से पहले आते हैं कश्यप ऋषिदृष्ट हैं। इन सूक्तो का पहला सूक्त है “जातवेदस के लिए …(जातवेदसे सुनवाम ……..ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 99 )। शकुपानी के अनुसार उनमे क्रम से एक-एक मंत्र बढ़ता जाता हे। (ब्रहद्देवता 3 -130 -B)
३.षड्गुरुशिष्य की वेदार्थदीपिका :
षड्गुरुशिष्य के लेखानुसार ये ऋचाएं संख्या में 5,00,499 थीं
ऋचस्तु पंचलक्षा स्युः सैकोनशतपंचकम्
इन सब तथ्यों से ये प्रमुख बिन्दु हमारे सामने आते हैं:
1.ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 99 जातवेदस सूक्त कश्यप ऋषिदृष्ट है।
2.ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 99 को मिलाकर कुल 1000 जातवेदस सूक्त कश्यप ऋषिदृष्ट हैं।
3.ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 99 इन 1000 सूक्तो में प्रथम सूक्त है।
4.कश्यप ऋषिदृष्ट ये 1000 सूक्त ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 100 से पहले आते है।
5.इन सूक्तों में क्रम से एक-एक मंत्र बढ़ता जाता हे, जिसका निस्कर्ष ये हुआ कि इन 1000 सूक्तों में कुल ऋचाओं की संख्या 500,500 हुई।
6.वर्तमान ऋग्वेद संहिता में कश्यप ऋषिदृष्ट इन 1000 सूक्तो में से केवल एक सूक्त मिलता है, जिसका निस्कर्ष ये हुआ कि 999 सूक्त लुप्त हो गए हैं या हम ये भी कह सकते है कि 5,00,499 ऋचाएं लुप्त हो गयी हैं।
ये सब प्रमाण चीख -चीख कर कह रहे हैं कि ऋग्वेद के ये सूक्त लुप्त हो गए हैं, जो हमें वर्तमान की परिवर्तित ऋग्वेद संहिता में नहीं मिलते। इस लेख में हम केवल ऋग्वेद की ही बात करेंगे परंतु इस श्रंखला के आने वाले लेखों में ऋग्वेद के साथ-साथ यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के भी परिवर्तनों को पाठकों के सामने रखेंगे। लेख को समाप्त करने से पहले में लिखना चाहूंगा कि जो पाठक और विद्धान लेख पर टिप्पणी करें गे वो ये कथन अपने मस्तिष्क में रखें
प्रमाणसिद्धांतविरुद्धमत्र यत्किंचिदुक्तं मतिमान्धदोषात्
मात्सर्यमुत्सार्य तदार्यचित्ताः प्रसादमाधाय विशोधयंतु
अर्थात यदि अपनी मंदमती के कारण मैं ने यहां प्रमाण और सिद्धांत के विरुद्ध कुछ कह दिया हो तो उस पर बुरा मानने के बजाय उदारचेता विद्धान उस का शोधन करने की कृपा करें।