मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने ?

Written by Neer Mohammed
जब भी हिंदू धर्म में व्याप्त जाति व्यवस्था पर वार्तालाप की जाती है प्राय: जाति परिवर्तन के अनेकों उधारण दिये जाते हैं और ये संदेश दिया जाता है कि जाति बदली जा सकती है। हम अपने इस लेख और आने वालें लेखों में कुछ ऐसे ही उधारणों पर चर्चा करेंगे।
मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने ?
मतंग (ना की मातंग) ऋषि की कथा विस्तार से महाभारत के अनुशासन पर्व (अध्याय 27 से 29) में आती है। उसमे आता है कि मतंग ऋषि एक ब्राह्मणी के पेट से शूद्रजातीय नाई द्वारा पैदा किए गए एक चांडाल है (अनुशासन पर्व अध्याय 27 श्लोक 17)। शूद्र वर्ण में जन्मे मतंग ऋषि घोर तप करते हैं। उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर इन्द्र उनके पास कई बार आते है और वर मांगने के लिए कहते है। मतंग वर मांगते है कि “मैं ब्राह्मण बन जाऊं । इस पर इंद्र बार-बार इसे छोड़ कर कोई अन्य वर मांगने के लिए कहते हैं।
इन्द्र का कहना है कि:
चण्डालयोनौ जातेन नावाप्यं वै कथंचन – महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 29 श्लोक 4
चाण्डाल की योनि में जन्म लेने वाले को किसी तरह भी ब्राह्मणत्व नहीं मिल सकता।
मतंग ब्राह्मणत्वं ते विरुद्धमिह दृश्यते । ब्राह्मणयं दुर्लभतरं – महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 29 श्लोक 8
मतंग इस जन्म में तुम्हारे लिए ब्राह्मणत्व की प्राप्ति असंभव दिखायी देती है। ब्राह्मणत्व अत्यंत दुर्लभ है।
लेकिन मतंग नहीं मानते। इन्द्र चले जाते हैं। ऐसा कई बार होता है। अंतिम बार इंद्र आते हैं। मतंग पहले सा आग्रह नहीं करते वह अन्य वर मांगते हैं। वह कहते हैं-
यथा कामविहारी स्यां कामरूपी विहड्नमः ।ब्रह्मक्षत्राविरोधेन पूजां च प्राप्नुयामहम् ॥
यथा ममाक्षया किर्तिर्भवेच्चापि पुरंदर ।कर्तुमर्हसि तद् देव शीरसा त्वां प्रसादये ॥ – महाभारत अनुशासन पर्व अ० 29 श० 22-23
देव पुरंदर आप ऐसी कृपा करें, जिससे मैं इच्छानुसार विचरनेवाला तथा अपनी इच्छा के अनुसार रूपधारण करने वाला आकाशचारी देवता होऊँ । ब्राह्मण और क्षत्रियों के विरोध से रहित हो मैं सर्वत्र पूजा एवं सत्कार प्राप्त करूँ तथा मेरी अक्षय किर्ति का विस्तार हो। मैं आपके चरणों में मस्तक रख कर आपकी प्रसन्नता चाहता हूँ। आप मेरी इस प्राथना को सफल बनाइये ।।
इंद्र वर देते हुए कहते हैं-
छंदोदेव इति ख्यातः स्त्रीणां पुज्यो भविष्यसि ।किर्तिश्र्च ते तुला वत्स त्रिषु लोकेषु यास्यति॥महाभारत अनुशासन पर्व अ० 29 श० 24
इंद्र ने कहा –वत्स ! तुम स्त्रियों के पूजनीय होओगे। छंदोदेव के नाम से तुम्हारी ख्याति होगी और तीनों लोकों में तुम्हारी अनुपम किर्ति का विस्तार होगा ।।
स्पष्ट है की मतंग चांडाल से ब्राह्मण नहीं बना ।इसी बात को 29 वे अध्याय के 26 वें श्लोक में दोहराया गया है-
एवमेतत् परं स्थानं ब्राह्मण्यं नाम भारत । तच्च दुष्प्रापमिह वै महेंद्रवचनं यथा ॥ महाभारत अनुशासन पर्व 29 अ० श० 26
भारत ! इस तरह यह ब्राह्मणत्व परम उत्तम स्थान है। जैसा की इंद्र का कथन है, यह इस जीवन में दूसरे वर्ण के लोगों के लिए दुर्लभ है।
आर्यसमाजियों की धोकेभाज़ी- मूल मंत्र में हेराफेरी
इतनी स्पष्ट मतंगकथा के होते हुए भी किस तरह लोग भ्रांति में पड़ते हैं। इस का कारण स्वामी दयानंद जी का सत्यार्थ प्रकाश है, जिस में लिखा है-“ महाभारत में……मातंग ऋषि चांडाल कुल से ब्राह्मण हो गए थे।” (चतुर्थ समुल्लास)। इस बात को पुष्ट करने के लिए सत्यार्थप्रकाश के आर्यसमाज शताब्दी संस्करण (रामलाल कपूर ट्रस्ट प्रकाशन) के पृष्ठ 141 पर पादटिप्पणी में संपादकों ने महाभारत ,अनुशासन पर्व (3/19) का एक श्लोक,बिना अर्थ लिखे ,अंकित कर दिया है-
स्थाने मातंगो ब्राह्मण्यमलभद् भरतर्षभ,
चण्डालयोनौ जातो हि कथं ब्राह्मण्यमवाप्तवान्
कुछ ऐसा हि प्रयास सत्यार्थप्रकाश मानक संस्करण( श्रीमद् दयानंद सत्यार्थ प्रकाश न्यास ) द्वारा किया गया। इस संस्करण में विशेष टिप्पणी भाग पृष्ठ 27 में मतंग ऋषि के प्रकरण पर यह टिप्पणी बिना अर्थ के की गयी है-
स्थाने मतंगो ब्राह्मण्यमलभद् भरतर्षभ,
चण्डालयोनौ जातो हि कथं ब्राह्मण्यमवाप्तवान् -महा,अनु (3/19)
इसी पथ पर चलते हुए कुछ वीरों ने (या कहिए झूठो ने) भी वीरता (पढ़िये कायरता) दिखाने की कोशिश की है:
इस श्लोक में आर्यसमाजियों ने हेराफेरी की है। मूल में “न” शब्द था, जो पादटिप्पणी में गायब है। अर्थ वैसे ही नहीं लिखा था। आर्यसमाजियों की बोधिक ईमानदारी का अंदाजा पाठक स्वयं लगा सकते हैं। अब यह जिज्ञासा बनी रहती है कि वास्तव में इस श्लोक का क्या अर्थ है। प्रकरण विश्वामित्र का चल रहा है। अध्याय के अंत में युधिष्ठिर का प्रश्नात्मक कथन है
स्थाने मतंगो ब्राह्मण्यं नालभद् भरतर्षभ,
चण्डालयोनौ जातो हि कथं ब्राह्मण्यमवाप्तवान् -महा,अनु (3/19)
प्रमाण
1.गीता प्रैस गोरखपुर महाभारत हिन्दी अनुवाद सहित पृ. 5439
इस का अर्थ प्रकरण में इस तरह आता है: भरतश्रेष्ठ, मतंग को जो ब्राह्मणत्व नहीं प्राप्त हुआ,यह उचित ही था,क्योंकि उस का जन्म चांडाल की योनि में हुआ था,परंतु विश्वामित्र ने कैसे ब्राह्मणत्व प्राप्त कर लिया ?
स्वामी दयानंद का कथन महाभारत के उपरोक्त विवरण के बिलकुल विपरीत होने के कारण निराधार और कपोलकल्पित है। यहा स्पष्ट है की मतंग ब्राह्मण नहीं बनते, इस श्लोक में विश्वामित्र जी का भी उल्लेख किया गया है। इसकी यथार्थता हम इस श्रंखला के अगले लेख में देखेंगे।