ब्लॉग: अगर बाबा रामदेव भी टोपी पहेन कर कुछ बोल दें तो मीडिया उसे फतवा बना देगी!
पिछले कुछ समय से अगर आप कोई न्यूज़ चैनल लगाएं। तो ये तो हो ही नही सकता के आप तलाक़, अज़ान, फ़त्वा जैसे शब्दों को न सुनें। इतने शब्द तो ETV उर्दू, मुंसिफ और ZEE सलाम जैसे “टोकन मुस्लिम” चैनेलों पर भी सुनने को नही मिलते हैं। मीडिया में रोज़ किसी न किसी विषय पर डिबेट होती है।
फतवा उस राय को कहा जाता है जो मुफ़्ती सवाल पूछे जाने पर देता है। फतवा कुरान, हदीस और इस्लामी किताबो की रौशनी में दिया जाता है। कोई मौलाना, आलिम या इस्लामी स्कॉलर भी फतवा नही दे सकता। अभी कुछ ही दिनों पहले असम के मुस्लिमो द्वारा एक म्यूजिक कंसर्ट के खिलाफ की गयी अपील को फतवा बता कर मीडिया ने काफी हंगामा खड़ा कर दिया था। India Today ने तो उसे आतंकवाद से भी जोड़ दिया था। बाद में सच्चाई सामने आने के बाद NDTV को छोड़ के किसी भी न्यूज़ चैनल या पत्रकार ने माफ़ी नही मांगी।
अभी चंद दिनों पहले गायक सोनू निगम ने दावा किया के उनकी नींद अज़ान की वजह से खुल जाती है। इस पर काफी बवाल हुवा, कुछ पत्रकार उनके घर के बाहर सुबह सवेरे जा पहुंचे। मगर किसी को अज़ान सुनाई नही दी। अभी ये बवाल चल ही रहा था कि तभी सय्यद आतिफ अली कादरी नाम के आदमी ने सोनू निगम को गंजा करने पर १० लाख का इनाम देने की घोषणा कर दी।
फिर क्या था, इस खबर को ANI के कैमेरो से सभी चैनल्स की ब्रॉडकास्ट फीड में जाने के लिए ज्यादा समय नही लगा। शाम की डिबेट के लिए मसाला मिल गया। फ़ौरन ही उस आदमी को मौलाना और मुफ़्ती बना दिया गया। और उसके बचकाने बयान को फतवा। सोनू ने भी अपने सर को एक मशहूर हेयर स्टाइलिस्ट के हाथो गंजा करवा दिया। और एक बड़ी से प्रेस कांफ्रेंस कर के अपने १० लाख के इनाम की मांग भी कर डाली।
बस, मीडिया की नजर में सोनू हीरो बन गए। एक अंग्रेजी चैनल, जो खुद अपने डिबेट के द्वारा ध्वनि प्रदुषण करने के लिए बदनाम है #SonuV/S Fanatics ट्रेंड करवाने लगा। तो वही एक और चैनल फतवों की औक़ात दिखाने की बात करने लगा। आतिफ अली कादरी के घर के बाहर मीडिया की ओ बी वेंस का ताँता लग गया। उनके बचकाने बयान को फतवा बताया गया। और करीब २ दिन डिबेट की गयी। सय्यद आतिफ अली ने ये बात खुद कही है के वो न मौलाना है न मुफ़्ती, उनके बयान को फतवा बता कर पेश किया गया।
जबकि उसी दिन बीजेपी के एक सीनियर लीडर ने कश्मीर को पूरी तरह से उजाड़ कर बचे कुचे कश्मीरियो को तमिलनाडू में कैंप बना कर क़ैद करने की बाद की थी। उस नेता के बयान पर न तो कोई डिबेट हुवी न ही कोई न्यूज़ सेगमेंट दिखाया गया। शायद मीडिया की नज़र में किसी गायक के बाल माँगना एक राज्य की पूरी आबादी को ख़तम करने की मांग से ज्यादा खतरनाक है।
देश में आज भी बहुत सी समस्याएं हैं। नए रोज़गार बनाने की दर ७ साल के सब से निचले स्तर पर है। नोट बैन के बावजूद भ्रष्टाचार आज भी बढ़ रहा है। मंहगाई आज भी वैसी ही है। धार्मिक असहिष्णुता के मामले में भारत चौथे नंबर पर है। रोज़ जवान अपने प्राणों की आहुति दे रहे हैं। हर हफ्ते नक्सली कहीं ना कहीं हमला करते हैं।
जी हाँ, ये सब समस्याएँ पहले भी होती थी। मगर उस समय सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता था। मीडिया प्रधान मंत्री से सवाल पूछती थी और डिबेट में “नेशन” दोषी कौन है ये “जानना चाहता” था। आज कल मीडिया तलाक़, बुर्का और काल्पनिक फ़त्वो पर डिबेट करता है। किसी भी दाढ़ी टोपी वाले की बात को फतवा बता कर पेश करना मीडिया के लिए अब आम सी बात है।
बल्कि मैं तो कहता हूँ अगर बाबा रामदेव भी टोपी पहन कर कुछ बोल दें तो मीडिया उसे फतवा बना कर उस पर डीबेट करवाएगी। जनता का ध्यान मूल मुद्दों से भटकने के लिए ये सब से उपयोगी तरीका है।
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SOURCE: http://www.theresistancenews.com/opinion/media-propaganda-and-fatwa-ruling/